Tuesday, June 30, 2009

ममता जी, कब बंद होगी जनरल बोगी में यात्रा करने वालों की रेल पुलिस द्वारा पिटाई

रेल बजट आने वाला है। हर साल आता है और चला जाता है। कहां हैं सुविधाएं और कब मिलेंगी? लालू प्रसाद ने एक नियम बनाया था तत्काल कोटा का। इससे कमाई भी हुई, मुनाफा भी बढ़ा। बिल्कुल हवाई यात्रा टाइप सुविधा थी कि आप अगर प्रस्थान समय के ५ दिन पहले टिकट लेते हैं तो अधिक पैसा देना पड़ेगा।

सुरक्षा का क्या होगा??? भगवान जाने। हर एक आदमी जिसने कभी रेल में जनरल बोगी में यात्रा की है, उसे पता होगा कि किस तरह से रेलवे पुलिस लोगों को लूटती है। पैसा न देने पर पीटती है। साथ ही बोगी में चार सिपाही आते हैं और सबको पीटना शुरू कर देते हैं। आखिर सुरक्षा की यह कौन सी व्यवस्था है?? क्या इसे रोके जाने की जरूरत कभी महसूस की गई है?? या कभी महसूस की जाएगी। अगर आपको इस माहौल से रूबरू होना है या आप इसे गलत समझ रहे हैं तो बिहार से मुंबई या दिल्ली जाने वाली किसी भी जनरल बोगी में घुस जाएं। आपने अगर टिकट लिया है तो सुरक्षा देने के लिए रेल पुलिस पीटकर आपसे २० रुपये ले लेगी। सामान ज्यादा लिए होने पर (जैसा कि अक्सर मजदूर वर्ग के पास होता है) अतिरिक्त पैसा देना होगा और पिटाई भी ज्यादा पड़ेगी।

इन घटनाओं का कोई पुरसाहाल नहीं है। किसी की औकात भी नहीं है कि अगर वह किसी काम से या नौकरी पर जा रहे हों तो इसके खिलाफ आवाज उठा सकें। पहली बात तो २० रुपये और चार थप्पड़ या दो लाठी खाना आसान है, वनिस्पत पुलिस में सूचित करना... स्वाभाविक है कि आप उसी रेल पुलिस को शिकायत करने जाते हैं, जिसने आपको रेल में नाहक पीटा होता है। ऐसे में शिकायत करने पर एक बार फिर पिटने की संभावना प्रबल हो जाती है।

Tuesday, June 23, 2009

हर लड़की तीसरे गर्भपात के बाद धर्मशाला हो जाती है

एक सम्पूर्ण स्त्री होने के पहले ही

गर्भाधान की क्रिया से गुज़रते हुए

उसने जाना कि प्यार

घनी आबादी वाली बस्तियों में

मकान की तलाश है

लगातार बारिश में भीगते हुए

उसने जाना कि हर लड़की

तीसरे गर्भपात के बाद

धर्मशाला हो जाती है और कविता

हर तीसरे पाठ के बाद

नहीं – अब वहाँ अर्थ खोजना व्यर्थ है

पेशेवर भाषा के तस्कर-संकेतों

और बैलमुत्ती इबारतों में

अर्थ खोजना व्यर्थ है

हाँ, अगर हो सके तो बगल के गुज़रते हुए आदमी से कहो –

लो, यह रहा तुम्हारा चेहरा,यह जुलूस के पीछे गिर पड़ा था

सुदामा पांडेय- धूमिल

Thursday, June 18, 2009

बोनस की राशि कहां खर्च करेंगे आप

मनीश कुमार मिश्र


मेरे मित्र गोपाल ठाकुर को बोनस का बेसब्री से इंतजार रहता है। प्रत्येक वर्ष एकमुश्त मिलने वाली इस राशि से वह या तो जरूरत की कोई वस्तु खरीदते हैं या उतने पैसों को सावधि जमा में निवेश कर डालते हैं। पिछले वर्ष उन्होंने बोनस के पैसे 3 वर्षो की सावधि जमा में लगा दिए थे।

कुछ लोगों का सोचना इसके ठीक विपरीत होता है। पैसे हैं तो खर्च करो, यही उनका नारा होता है। यह मायने नहीं रखता कि पैसे का स्रोत क्या है, यह मेहनत की कमाई है या किसी निवेश से प्राप्त होने वाला लाभ, पैसे तो पैसे हैं इसका अपना महत्व है। इसे लापरवाही से खर्च करना बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती है।

कैसे करें इनका प्रबंधनपिछले वर्ष राहुल ने दिवाली से पहले लॉटरी की टिकट खरीदी थी, किस्मत अच्छी थी उसकी। दिवाली की रात के बंपर ड्रा में उसे 1.5 लाख रुपए मिले। राहुल के लिए यही बोनस था। उसने सोचा कि अभी किस्मत अच्छी है तो क्यों न इन पैसों को शेयर में लगा दिया जाए? बिना मेहनत के प्राप्त होने वाले पैसों से जैसे उसे कोई मोह ही नहीं था। उसके पिता ने समझाया भी कि ‘चलो तुम्हारी मर्जी है तो शेयर में 50000 रुपए का निवेश कर डालो और शेष बचे एक लाख रुपए सुरक्षित विकल्पों जैसे राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र, सावधि जमा, पीपीएफ आदि में लगा दो।’ राहुल के पिताजी की सलाह उचित भी थी लेकिन उनकी बात न मानते हुए उसने 75000 रुपए शेयर में लगा ही दिए।
इस प्रकार मिलने वाली एकमुश्त राशि का उपयोग ऋण चुकाने में भी किया जा सकता है। इससे आपको मानसिक शांति तो मिलेगी ही साथ ही ब्याज के रुप में दिए जाने वाले पैसे भी आप बचा सकेंगे। सर्वप्रथम वैसे ऋण को चुकता करने के बारे में सोचें जिसकी ब्याज दर अधिक है।
पर्सनल लोन सबसे अधिक खर्चीले होते हैं और इनके ब्याज दर भी प्राय: 15-30 प्रतिशत वार्षिक के होते हैं। प्रति महीने अपनी मेहनत की कमाई से इनके ब्याज चुकाते रहने से कहीं बेहतर है कि इसका पूर्ण भुगतान कर दिया जाए। मासिक किश्तों के जाने पर विराम लगने के बाद, विश्वास कीजिए, आपके वेतन में बड़क्कत भी होगी। पर्सनल लोन के बाद बारी आती है ऑटो लोन की। अगर पर्सनल लोन चुकाने के बाद पर्याप्त पैसे बच रहे हों तो इनका निपटान भी कर डालें। शिक्षा ऋण और आवास ऋण पर आयकर वाले लाभ प्राप्त होते हैं इसलिए इन्हें चुकाने के बारे में सबसे अंत में सोचना चाहिए। चलिए मान लेते हैं आपने ऐसा कोई लोन नहीं लिया हुआ है। लेकिन संभव है कि आपने अपने दोस्त या रिश्तेदार से कभी ऋण लिया हो। हालांकि इस प्रकार के उधार ब्याज रहित होते हैं लेकिन नैतिक तौर पर उचित यही है कि इन्हें चुका कर आप उनका धन्यवाद ज्ञापन करें। क्या अब भी आपके कुछ पैसे बच रहे हैं?
खर्च करने से पहले जरा रुकिए। याद कीजिए कि कहीं किसी खास मकसद से आपने बचत की शुरुआत तो नहीं की थी? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप घर खरीदना चाहते हों और उसके डाउनपेमेंट के लिए पैसे जुटा रहे हों?
निकट भविष्य में परिवार में किसी की शादी के लिए तो बचत नहीं कर रहे आप? इन सब उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी आप इन पैसों का सदुपयोग कर सकते हैं। उपरोक्त व्यवस्था करने के बाद आप अपनी चाहतों को तरजीह दे सकते हैं। अगर लैपटॉप या होम थिएटर खरीदने का मन कर रहा हो तो अब आप खुद को मत रोकिए क्योंकि आपने पहले ही बाकि चीजों की व्यवस्था कर ली है।

http://www.bhaskar.com/2007/10/13/0710140008_bonus.html

बड़े उपयोगी हैं वित्तीय निर्णय लेने के ये सामान्य नियम

मनीश कुमार मिश्र

वित्तीय योजना बनाने और उस हिसाब से उत्पादों का चयन करने में गणित के साथ-साथ अर्थशास्त्र के ज्ञान की भी आवश्यकता होती है। ऐसा करना प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं होती है।
निवेश करने के कुछ मोटे नियम हैं जो काफी हद तक कामयाब साबित हुए हैं। इसके लिए न तो आपको ज्यादा गणित जानने की आवश्यकता है और न ही अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने की। वित्तीय निर्णय लेने वाले व्यक्तियों की सुविधा के लिए ऐसे कुछ अतिसामान्य से नियम बनाए गए हैं।
पहले ही बताते चलें कि इनकी तह में जाने पर इसकी उपयोगिता कम हो सकती है लेकिन मोटे तौर पर ये नियम अपनी जगह पर ठीक हैं। फिर भी इसे अपनाते समय आपको सावधानी बरतनी चाहिए। इन तरीकों को अपनाइए और फायदा उठाइए।
बीमा+निवेश न कि निवेश+बीमा
प्रमाणित वित्तीय योजनाकार विश्राम मोदक कहते हैं, 'जीवन बीमा के मामले में एंडाउमेंट या यूलिप का चुनाव करना बुध्दिमानी नहीं कही जा सकती है। बीमा और निवेश का मिश्रण किसी भी नजरिए से बेहतर नहीं हो सकता है। यूलिप या एंडाउमेंट योजना को आप दो भागों में बांटिए।
एक हिस्सा अपनी जरुरत के अनुसार टर्म इंश्योरेंस प्लान लेने में लगाइए और शेष बचे पैसों को कहीं और निवेशित कर दीजिए।' उनके अनुसार, यूलिप=बीमा+निवेशकी जगह- बीमा+निवेश = यूलिप से अधिक लाभ का सूत्र अपनाइए। एक टर्म इंश्योरेंस प्लान खरीद कर शेष बची राशि का निवेश आप किसी म्यूचुअल फंड की योजना (विशेष रूप से सिप में) कीजिए, यह आपको यूलिप से अधिक लाभ दिलाएगा।

अधिकतम ऋण के नियम
आपने गौर किया होगा कि बैंक सबसे अधिक ऋण होम लोन के रूप में देता है जो आपकी मासिक आय का लगभग 55 गुना तक हो सकता है। अपनालोन के मुख्य कार्याधिकारी हर्षवर्ध्दन रुंगटा कहते हैं, 'बैंक मासिक आय, भुगतान करने की क्षमता, ऋण की अवधि और जायदाद के मामले में जायदाद की कीमत के आधार पर 35 से 55 प्रतिशत तक का ऋण उपलब्ध कराते हैं।'
चलिए मान लेते हैं कि आप 10.5 प्रतिशत की दर पर 20 वर्षों के लिए ऋण लेते हैं और आपकी मासिक किस्त प्रति लाख रुपये के लिए 1,000 रुपए बैठती है। मान लेते हैं कि आपको मिलने वाला वेतन प्रति माह 10,000 रुपये है।
ऋण के सामान्य नियम के मुताबिक कोई भी बैंक यह उम्मीद करता है कि आप मासिक किश्त के रुप में अधिकतम 5,000 रुपये का भुगतान कर सकते हैं। इसलिए वे आपको अधिकतम 5,00,000 रुपये तक का ऋण उपलब्ध करा सकते हैं। यह आपकी मासिक आय के लगभग 50 गुना है।
रूंगटा ने बताया, 'अगर बैंक को यह जानकारी मिलती है कि आपने अन्य किसी प्रकार का भी ऋण पहले से लिया हुआ है जिसकी मासिक किस्तों का आप भुगतान कर रहे हैं तो तो उसी हिसाब से वे आपके ऋण की पात्रता का निर्धारण करते हैं।' अगर आप मासिक किश्त के रुप में 5,000 रुपये प्रति माह दे रहे हैं तो कोई बैंक शायद ही आपको ऋण उपलब्ध कराए।

कब होंगे पैसे दोगुने
बैंक किस समयावधि में आपके पैसों को दोगुना कर देगा, यह जानने का एक आसान तरीका मौजूद है। 72 में ब्याज दर से भाग दीजिए, इस प्रकार जो संख्या प्राप्त होती है उसे आप वर्ष मानिए। अगर ब्याज वार्षिक जुड़ता हो तो उतने वर्षों में आपके पैसे दोगुने हो जाएंगे।
उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि कोई बैंक आपको 10 प्रतिशत वार्षिक का ब्याज देता है। ऊपर बताए गए तरीके के मुताबिक यह 7210 वर्षों में अर्थात 7.2 वर्षों में बैंक में जमा की गई रकम दोगुनी हो जाएगी।
अगर ब्याज तिमाही या छमाही जुड़ता हो तो इसके दोगुने होने में अपेक्षाकृत कम समय लगेगा। पहले 5 वर्षों में पैसे दोगुने हो जाते थे, इस मोटे नियम को लागू कर देखा जाए तो उस समय मिलने वाला ब्याज 14.2 फीसदी वार्षिक का था।

इक्विटी में निवेश
ऐसा कहा जाता है कि पोर्टफोलियो में इक्विटी के हिस्से का निर्धारण आप 100 में से अपनी उम्र घटा कर करें। मान लीजिए कि आपकी उम्र 30 वर्ष है और आप 10,000 रु पये का निवेश करना चाहते हैं तो आपको इक्विटी में 7,000 रुपये का निवेश करना चाहिए।
अगर आप 60 वर्ष के हैं तो इस नियम के मुताबिक आपको अपने कुल निवेशित की जाने वाली राशि के 40 प्रतिशत का निवेश इक्विटी में करना चाहिए। आधार के लिए इस नियम का प्रयोग किया जा सकता है। वास्तव में पोर्टफोलियो में विभिन्न घटकों का निर्धारण आपके भविष्य की जरूरतों, जोखिम उठाने की क्षमता आदि के अनुसार निर्धारित की जाती है।

जीवन बीमा गणना की तरकीब
किसी व्यक्ति के जीवन के मूल्य का आकलन करना मुश्किल है। वैसे भी जीवन बीमा कोई व्यक्ति अपने लिए तो करवाता नहीं है, यह तो आश्रितों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिए लिया जाता है। जीवन बीमा लेते समय सम एश्योर्ड के निर्धारण का एक सामान्य सा नियम यह है कि आप अपनी वार्षिक आय का 10 गुना सम एश्योर्ड लें।
ताकि आपके न होने की दशा में अगर सम एश्योर्ड की राशि पर वार्षिक 10 प्रतिशत का भी प्रतिफल मिले तो आपके आश्रितों को आपके न होने की कमी आर्थिक तौर पर न खले। ध्यान रखें ये नियम शुरुआत करने के लिए हैं। जीवन बीमा का सम एश्योर्ड हो या इक्विटी में निवेश, वास्तविक जरुरत विभिन्न व्यक्तियों की विभिन्न परिस्थितियों के आधार पर भिन्न- भिन्न होती हैं।
http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=20100

Thursday, June 4, 2009

यह कैसा दलित सम्मान?

राष्ट्रपति के अभिभाषण में इस बात का जिक्र किया गया कि सरका ने एक दलित महिला मीरा कुमार को लोकसभा अध्यक्ष बना दिया, जिससे लोकतंत्र का मान बढ़ा है।
भारत में दलितों को पद प्रतिष्ठा और सम्मान देने की होड़ सी लग गई है। खासकर मायावती के शक्तिशाली होने के बाद तो जैसे राजनीतिक पार्टियों को लगता है कि सोया हुआ जिन्न जाग गया है। कांग्रेस पार्टी ने मीरा कुमार को लोकसभा अध्यक्ष बना दिया। शपथ ग्रहण के समय सोनिया के चेहरे की मुस्कराहट जाहिर कर रही थी कि वह विजयी मुस्कान है। बड़ा दुख होता है कि मीरा कुमार के लोकसभा अध्यक्ष बनने के बाद सत्तासीन पार्टी कहते फिर रही है कि दलित.को अध्यक्ष बना दिया। दलित और उनके जाति के संबोधन को भारतीय समाज में गालियों की तरह ही लिया जाता है। अब मीरा को इतनी बार दलित कहा जा रहा है कि वे इस एहसान से दब जाएंगी कि ऐसा लगता है कि बगैर किसी योग्यता के दलित होने के चलते ही उन्हें यह पद मिल गया है। हालांकि उनका पिछला इतिहास देखा जाए तो हर मौके पर उन्होंने अपनी योग्यता साबित की है।अब सवाल यह उठता है कि लोकसभाध्यक्ष पद पर बैठाने के बाद, बार बार दलित का नारा लगाने और ऐसा किया, यह जताने के बाद कोई पार्टी दलितों के दिल में जगह बना सकती है? क्या इस तरह से मायावती के राजनीतिक कद का सामना किया जा सकता है? वैसे भी मीरा कुमार ने अपनी ताकत से यह पद नहीं हासिल किया, बल्कि उनके पीछे पूर्व कांग्रेसी दिग्गज जगजीवन राम का बैक अप है। भले ही मीरा कुमार योग्य हैं, लेकिन क्या जनता उन्हें दिल से अपना नेता स्वीकार कर पाएगी, कि लोकतंत्र के ताकतवर होने की वजह से एक वंचित तबके की महिला को सम्मान मिला है??

Tuesday, June 2, 2009

हर जगह पिटेंगे भारतीय, देश में भी-विदेश में भी

अब आस्ट्रेलिया में भारतीयों की पिटाई हो रही है। विदेश में रहने वाले तमाम मराठियों ने महाराष्ट्र में एक गुंडे का समर्थन किया था, जब वह उप्र और बिहार के लोगों को पिटवा रहा था। कांग्रेस भी चुप, भाजपा भी चुप।
यही कांग्रेस सरकार केंद्र में थी और महाराष्ट्र में भी, जब महाराष्ट्र में मराठी गैर मराठी के नाम पर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग बड़े पैमाने पर पीटे और मारे जा रहे थे। सरकार कुछ नहीं कर सकी। अब आस्ट्रेलिया में स्थानीय लोगों की नौकरी छीनने के नाम पर भारतीयों को पीटा जा रहा है और वहां राजनीति हो रही है तो यह सरकार क्या कर सकती है? यह तो विदेश का मामला है। कुछ नहीं होने वाला गुरू, लात खाते रहो, जीते रहो और कांग्रेस, भाजपा को वोट देकर सत्ता देते रहो। फिलहाल अभी तो कांग्रेस की जय हो।
हम यही कर सकते हैं, जो फोटो में ये लोग कर रहे हैं।