Sunday, January 11, 2009

आभूषणों से बेहतर गोल्ड ईटीएफ




"- गोल्ड ईटीएफ में निवेश कर होती है सोने की अभौतिक खरीदारी, भौतिक सोने में निवेश से जुड़ा जोखिम नहीं"

मनीश कुमार मिश्र


शेयर बाजार की स्थिति फिलहाल भ्रमित करने वाली है। बाजार की दिशा के सेदर्भ में अनुमान लगाना मुश्किल है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह समय इक्विटी फंडों में निवेश के लिए पूरी तरह उपयुक्त है।

लेकिन, पोर्टफोलियो के विशाखण और संतुलन के लिए सोने को सम्मिलित करने की सलाह भी देते हैं। सोने की कीमत साल की दूसरी छमाही में पहली छमाही की तुलना में अधिक होती है क्योंकि यह मौसम शादी-विवाह का होता है। इसे देखते हुए क्या धातु में निवेश करना का यह उपयुक्त समय है? पार्क फाइनैंशियल एडवाइजर के अखिलेश तिलोतिया कहते हैं,'पोर्टफोलियो बनाते समय सोने को निश्चित तौर पर शामिल करना चाहिए।

अगर, 50-60 फीसदी इक्विटी फंडों में निवेश करते हैं तो 10 से 15 प्रतिशत निवेश सोने में भी किया जाना चाहिए। वैसे भी सोना निवेश का सबसे सुरक्षित विकल्प है।' तो क्या निवेश या फिर पोर्टफोलियो के विविधीकरण के लिए आपको नजदीक के आभूषण विक्रेता के पास जाकर सोने के आभूषण खरीदने चाहिए, जिस पर आपकी महीनों से नजर थी? या पड़ोस के बैंक से सोने के सिक्के की खरीदारी करना आपके लिए ज्यादा लाभदायक साबित होगा?अगर सोने में ही निवेश करना है तो इसे भौतिक रुप से खरीदने की क्या जरुरत है। गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) सोने में निवेश करने का सबसे बेहतर माध्यम हो सकता है। ईटीएफ वस्तुत: म्यूचुअल फंड हैं जिसके यूनिटों का कारोबार स्टॉक एक्सचेंजों में ठीक उसी प्रकार किया जा सकता है जैसे किसी कंपनी के शेयरों का।

गोल्ड ईटीएफ में निवेश कर आप सोना अभौतिक रुप में खरीदते हैं, इसमें भौतिक सोने में निवेश से जुड़ा जोखिम नहीं है। गोल्ड ईटीएफ चूंकि डीमैट रुप में होता है इसलिए जो निवेशक इसमें निवेश करना चाहते हैं उनका डीमैट खाता होना आवश्यक है।कोई भी व्यक्ति गोल्ड ईटीएफ के यूनिटों की खरीदारी स्टॉक एक्सचेंजों से कर सकता है जहां वर्तमान में पांच गोल्ड ईटीएफ फंड सूचीबध्द हैं। इन पांच फंडों में बेंचमार्क गोल्ड ईटीएफ और यूटीआई म्यूचुअल फंड का गोल्डईटीएफ, रिलायंस गोल्ड ईटीएफ, क्वांटम गोल्ड ईटीएफ और कोटक गोल्ड ईटीएफ शामिल हैं।

यह बात भूलनी नहीं चाहिए कि शेयरों की तरह ही गोल्ड ईटीएफ के यूनिटों की खरीदारी करने में आपको ब्रोकरेज शुल्क का भुगतान करना होता है। जब कोई निवेशक गोल्ड ईटीएफ का एक यूनिट खरीदता है तो प्रभावी तौर पर वह एक ग्राम सोना खरीद रहा होता है। दूसरी बात यह कि गोल्ड ईटीएफ में किए गए निवेश का मूल्य सोने के वास्तविक बाजार मूल्य से लगभग मेल खा रहा होता है। 2 जनवरी 2009 को जहां सोने का बाजार मूल्य प्रति ग्राम 1,357.5 रुपये था वहीं बेंचमार्क म्युचुअल फंड के गोल्ड ईटीएफ के एक यूनिट का मूल्य 1,364.64 रुपये था।

इस प्रकार आप जब भी चाहें गोल्ड ईटीएफ का एक यूनिट बेच कर बाजार से एक ग्राम सोना खरीद सकते हैं। जब कभी आप भौतिक तौर पर सोने में 15 लाख से अधिक की राशि का निवेश करते हैं तो आपको वेल्थ टैक्स देना पड़ता है। गोल्ड ईटीएफ के मामले में एक निवेशक सोने को अभौतिक रुप में या यूनिटों के रुप में रखता है इसलिए इस पर कोई वेल्थ टैक्स अदा करने की जरुरत नहीं होती है।वैसे लोगों को क्या करना चाहिए जो सोने की खरीदारी अपने पुत्र या पुत्री की शादी के लिए करना चाहते हैं? अधिकांश भारतीय परिवार शादी के कई वर्ष पहले से ही आभूषण खरीद-खरीद कर जमा करने लगते हैं। आभूषण के डिजाइन विवाह के समय तक पुराने हो जाते हैं।

आभूषण निर्माता और विक्रेता ऐसे में सलाह देते हैं कि डिजाइन की चिंता नहीं की जानी चाहिए क्योंकि उन्हीं गहनों को बाद में नए डिजाइनों में ढाला जा सकता है।डिजाइन को परिवर्तित कराने में भी पैसे लगते हैं। इसके अलावा अगर आप अपने आभूषणों को बैंक के लॉकर में सुरक्षित रखना चाहते हैं तो उसके लिए भी आपको अतिरिक्त पैसे देने होते हैं। हो सकता है कि आप आभूषणों का बीमा करवाना चााहें जिसके प्रीमियम में आपको अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं।

कुल मिला कर देखा जाए तो यह गोल्ड ईटीएफ में निवेश करने की अपेक्षा महंगा सौदा है। शादी-विवाह के लिए पहले से आभूषण खरीद कर रखने से बेहतर है कि आप गोल्ड ईटीएफ में निवेश करें। जब कभी आभूषण खरीदने की जरुरत हो तो इसके यूनिटों को बेच कर प्राप्त पैसों से नवीनतम डिजाइन वाले गहने खरीदे जा सकते हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि आपका विश्वस्त आभूषण विक्रेता भी आपको एक बार अशुध्द सोने के गहने पकड़ा सकता है लेकिन गोल्ड ईटीएफ चूंकि अभौतिक रुप में होता है इसलिए इसमें अशुध्दि संबंधी कोई जोखिम ही नहीं होता है।

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Friday, January 9, 2009

सवालों के घेरे में स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका


"अगर आप रामलिंग राजू से मिलें तो आपके दिमाग में
दो बातें जरूर कौंधेंगी। पहला, भारतीय सीईओ में आपको इतना मृदुभाषी व्यक्ति शायद ही मिले, कभी कभी तो वे इतने धीमे से बोलते हैं कि आपके लिए उसे समझना मुश्किल हो जाएगा।
"

अगर आप रामलिंग राजू से मिलें तो आपके दिमाग में दो बातें जरूर कौंधेंगी। पहला, भारतीय सीईओ में आपको इतना मृदुभाषी व्यक्ति शायद ही मिले, कभी कभी तो वे इतने धीमे से बोलते हैं कि आपके लिए उसे समझना मुश्किल हो जाएगा।
और दूसरे, वह तभी खुलकर बोलते हैं जब आप उनसे कार्पोरेट गवनर्स के बारे में बात करें। अगर आप बातचीत को दूसरी ओर मोड़ते हैं, जो सत्यम से जुड़ा हो तो उनके जवाब रटे-रटाए होते

राजू के साथ हुई एक ऐसी ही बैठक याद आ रही है। उस समय राजू ने विस्तार से बातचीत करते हुए बताया था कि सत्यम का मानना है कि बेहतरीन कार्पोरेट गवनर्स कारोबार के बेहतर परिणाम देता है और इससे कंपनी का प्रदर्शन बेहतरीन होता है और हिस्सेदारों को बहुत लाभ मिलता है। उन्होंने बोर होने तक मुझे यह सब कुछ सुनाया था। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि बेहतरीन कार्पोरेट गवनर्स के लिए सत्यम को दो गोल्डन पीकॉक पुरस्कार मिले, इस तरह के पुरस्कार मिलने से कंपनी को भविष्य में लगातार अपने कार्पोरेट गवनर्स में सुधार करने के लिए प्रोत्साहन मिलता

गुरुवार को दिए गए उनके चौंका देने वाले वक्तव्य से पता चलता है कि राजू कार्पोरेट गवनर्स के नियमों का पालन करने की बजाय इस कोशिश में लगे हुए थे कि किस तरह से सत्यम के बही खातों में गड़बड़ी की जाए। कंपनी के वित्तीय ब्यौरों में हेराफेरी और धोखाधड़ी इतनी ज्यादा हुई है कि यह किसी के भी दिमाग को उलझन में डाल सकती है। और अगर कोई राजू से पहले मिल चुका है और उनसे कुछ देर तक भी बातचीत की है तो वह उनके झूठ बोलने के स्तर के बारे में सोचकर हैरत में होगा, जैसा मेरे साथ हुआ।किसी पत्रकार को गुमराह करना कोई बड़ी बात नहीं है, अगर आप तुलना करें कि राजू ने किस तरह से 50,000 से अधिक कर्मचारियों का मात्र एक सप्ताह पहले तक नेतृत्व किया। मायटास की दो फर्म को खरीदने की योजना के निवेशकों द्वारा कड़े विरोध और उसके बाद उस योजना के खत्म हो जाने पर राजू ने अपने कर्मचारियों को लिखे गए एक पत्र में कहा था,''आप कंपनी के साथ बने रहिए,कंपनी ने हमेशा कार्पोरेट गवनर्स के उच्चतम मानकों का पालन किया है। आपसे अनुरोध किया जाता है कि आप अफवाहों पर ध्यान न दें।'' उन्होंने कर्मचारियों को यह भी याद दिलाई कि कंपनी ने गोल्डन पीकॉक अवार्ड पाया था।

राजू ने बताया था कि किस तरह उन्होंने उन सभी प्रक्रियाओं का पालन किया जो निदेशक मंडल के सर्वसम्मत फैसले के लिए जरूरी था और यह फैसला सत्यम को नई ऊंचाइयों पर ले जाता। इस तरह के उदाहरण मिलने कठिन हैं कि किसी सीईओ ने अपने कर्मचारियों के साथ इस तरह का विश्वासघात किया हो।राजू और उनके बेटों को निश्चित रूप से उनके द्वारा उठाए गए कदमों के परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
हकीकत यह है कि वे खुद भी इसे स्वीकार करते हैं और उन्होंने बोर्ड को लिए गए पत्र में इसका जिक्र भी किया है। राजू ने पत्र में कहा, 'मंत अपनी गलतियां स्वीकार करते हुए हर कानूनी कार्रवाई का सामना करने को तैयार हूं।'दरअसल, राजू ने यह आभास दिलाने की कोशिश की कि कंपनी बोर्ड के पुराने और मौजूदा सदस्यों को कंपनी की वास्तविक स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। यह एक उल्लेखनीय बयान है और इससे इस आम धारणा को बल मिलता है कि भारत में परिवारों द्वारा चलाए जाने वाले कारोबार में मालिक की ही अहमियत होती हैलेकिन ऐसा नहीं है कि राजू का बयान सत्यम के निदेशकों और वरिष्ठ प्रबंधकों के लिए एक चरित्र प्रमाण पत्र है। राम मयनामपति का ही उदाहरण लीजिए, जो अब कंपनी के अंतरिम सीईओ हैं, जिन्हें पद छोड़ने के बाद राजू ने ही यह काम सौंपा। मयनामपति कुछ ही दिन पहले तक कंपनी के तिमाही नतीजों के दौरान अपने चेयरमैन द्वारा बताए गए आंकड़ों को उचित ठहराने में व्यस्त थे।इस पर विश्वास करना कठिन है कि उन्हें सही आंकड़ों के बारे में जानकारी नहीं थी। या फिर इससे सत्यम के उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों की घोर अज्ञानता का पता चलता है।आप सत्यम के स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका को ही ले लीजिए, जो इस समय पूरे घटनाक्रम से दूरी बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।

इससे भी ज्यादा निराशाजनक यह है कि स्वतंत्र निदेशकों की टीम में हार्वर्ड के प्रोफेसर कृष्णा पालेपू, इंडियन स्कूल आफ बिजनेस के डीन एम राममोहन राव, उद्यमी विनोद धाम और पूर्व कैबिनेट सचिव टीआर प्रसाद शामिल हैं। अगर इस तरह के प्रभावशाली और प्रतिभाशाली लोग कार्पोरेट गवनर्स के मानकों की निगरानी नहीं कर सके तो निश्चित रूप से कहीं न कहीं से व्यवस्था में ही खामी है। हकीकत यह है कि राजू का वक्तव्य इस तरफ इशारा करता है कि ज्यादातर निदेशक मूकदर्शक रहने में ही विश्वास करते हैं और वे केवल उसी बात में विश्वास करते हैं, जो कंपनी के चेयरमैन उनसे विश्वास करवाना चाहते हैं। इस तरह से कार्पोरेट गवनर्स का पूरी तरह से मखौल ही बनता है कि कंपनी के प्रमोटर की कंपनी में मामूली हिस्सेदारी हो और वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ सभी कार्यों का संचालन करे।

इससे भारत के कार्पोरेट गवनर्स की एक बड़ी कमजोरी उजागर होती है कि ऐसे स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति की जाती है, जो या तो पुराने साथी हों या प्रबंधन में सहयोगी रहे हों या शेयरधारक हों।यह भी स्पष्ट होता है कि ज्यादातर स्वतंत्र निदेशकों के सामने परंपरागत रूप से यह उदाहरण होता है कि वे किसी तरह का दबाव न डालें और उन्हें यह भी डर बना रहे कि उनकी आलोचना को किस रूप में लिया जाएगा।हाल ही में हुए एक अध्ययन से भी यह पता चलता है कि 90 प्रतिशत कंपनियों ने स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्तियां सीईओ या चेयरमैन से राय लेने के बाद ही की हैं। स्वतंत्र सर्वेक्षणों से पता चलता है कि भारत में 5 में से 1 कंपनी ही बोर्ड के प्रदर्शन का आकलन करती हैं। बोर्ड द्वारा मामले को देखने की प्रक्रिया धीमी होती है और कुछ पुराने या बहुत ही वरिष्ठ निदेशक ही कुछ प्रतिरोध दर्ज कराते हैं। इन सबको देखते हुए यह जरूरी है कि बाजार नियामक अनुच्छेद 49 पर फिर से विचार करे, जो सूचीबध्दता समझौते से संबध्द है और स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका के बारे में बताता है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो सत्यम के नए अंतरिम सीईओ का बयान खोखला ही साबित होगा कि कंपनी के वरिष्ठ लोग उपभोक्ताओं, सहयोगियों, आपूतिकर्ताओं और सभी शेयरधारकों को किए गए वादों को निभाने के लिए एकजुट हैं और वे इसे जारी रखेंगे। और, यह न केवल सत्यम के लिए ही, बल्कि पूरे इंडिया इंक के लिए भी एक बुरी खबर होगी।



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आइये देखते हैं क्यों डगमगाती नजर आ रही है डीएलएफ की नाव

सत्यम वह करने में सफल नहीं हो सकी, जो डीएलएफ पिछले कई महीनों से कर रही है। दरअसल डीएलएफ ने मंदी आने के बाद खुद ही तमाम सहायक कंपनियां बना डालीं। उसके बाद उनकी ही सहायक कंपनियों ने बढ़े हुए दामों पर डीएलएफ की प्रॉपर्टी खरीदी। इस खेल से फायदा यह हुआ कि डीएलएफ का मुनाफा दिखाया जाता रहा। कंपनी के शेयर गिरे भी, लेकिन इस गड़बड़झाले और मुनाफा दिखाए जाने के चलते कंपनी के शेयरों के भाव बढ़े, जबकि हकीकत में कंपनी को मुनाफे जैसी कोई चीज मिली ही नहीं। कंपनी ने ताश के पत्तों के महल बनाए हैं। अब देखना है कि उसकी गति सत्यम जैसी कब होती है....

Thursday, January 8, 2009

सत्यम के बाद अब डीएलएफ!

पिछली पोस्ट में मैने लिखा था कि राजू ने तो केवल पूंजीवाद का चेहरा दिखाया है। पिछले सोमवार को डीएलएफ के सीएफओ ने अपने पास के कंपनी के एक लाख शेयर बेंच दिए। अचानक कंपनी के एक जिम्मेदार अधिकारी द्वारा शेयर बेचे जाने का कोई कारण समझ में नहीं आता। जब उस अधिकारी से कारण पूछा गया तो उसने कहा कि व्यक्तिगत कारणों से शेयर बेचे गए हैं।
आज बाजार खुलते ही डीएलएफ के शेयर गिरने लगे। भाइयों, एक बार फिर कहना पड़ रहा है कि पूंजीवाद का यही असली चेहरा है। हर तरह की बेइमानी से पैसा कमाओ। हां, मैने सत्यम को बेलआउट पैकेज दिए जाने की बात कही थी। अमेरिका ने भी उस कंपनी को बेलआउट पैकेज नहीं दिया था, जो बर्बाद होने वाली पहली कंपनी थी। लेकिन जब उसके यहां तमाम कंपनियां ताश के पत्ते की तरह भरभराकर गिरने लगीं तो पैकेज की झड़ी लगी। अब देखते जाइये कि अनिश्चितता के इस दौर में कौन-कौन से दिग्गज धराशायी होते हैं।

सत्यम को बेलआउट पैकेज की जरूरत


सत्यम कंप्यूटर्स के मुखिया रामलिंग राजू ने सिर्फ पूंजीवादी कार्पोरेट जगत का चेहरा देश के सामने रखा है। आखिर भारत में सभी लोग राजू को खलनायक, फ्राड और झूठा साबित करने पर क्यों तुले हैं? ऐसा ही कुछ तो इस समय दुनिया भर में हो रहा है। कंपनियां, बैंक, विभिन्न संस्थानों का फ्राड सामने आ रहा है, वे धराशायी हो रही हैं और वहां की सरकारें बेलआउट पैकेज देकर कंपनियों को बचाने की कोशिश कर रही हैं। आखिर वैसा ही कुछ तो राजू ने भी किया था- इसमें क्या गलत किया।


एक किसान परिवार में जन्मे रामलिंग राजू एक सप्ताह पहले तक देश के हीरो थे। यहां तक कि अमेरिका जैसा पूंजीवादी देश भी उनसे भयभीत रहते थे। अचानक जीरो कैसे हो गए?? पूंजीवादी व्यवस्था में ऐसा ही होता है कि पैसे से पैसा बनाया जाए। राजू ने भी यही किया। कंपनी का विस्तार करते चले गए। भले ही गलत बैलेंस शीट दिखाया। अगर विस्तार योजनाएं कारगर हो जातीं तो?? तब तो कंपनी के सभी शेयरधारकों की बल्ले-बल्ले होती ना। तब कोई उंगली नहीं उठाता कि गलत हुआ या किसी की जेब काटकर कोई अमीर हुआ है।


अब उद्योग जगत को ही देखिये। ऐसी व्यवस्था तो नहीं सोची जा रही है कि आम आदमी की कमाई बढ़े और वह गाड़ियां, मकान आदि-आदि खरीदने में सक्षम हो। उद्योग जगत यही मांग कर रहा है कि रिजर्व बैंक कर्ज सस्ता करे, लोग कर्ज लेकर घी पिएं और बाद में जब कर्जदार उन्हें घेरना शुरू करें तो वे आत्महत्या कर लें, डकैती करें, लूट करें, फ्राड करें या कुछ भी करें। कर्ज का भुगतान कर दें बैंकों को।


ऐसी नीति में तो यही जायज होगा कि जिस व्यक्ति ने ५०-६० हजार लोगों को पिछले बीस साल तक रोजी-रोटी दी, उसे गुनाहगार न मानते हुए तत्काल बेलआउट पैकेज दे दे। आखिर राजू ने क्या बुरा किया? अगर उन्होंने कंपनी का पैसा कहीं और जमा कर रखा हो तो सरकार उसे ढूंढे और जब्त कर ले या बेल आउट पैकेज में शामिल कर ले। लेकिन देश के गौरव के रूप में स्थान बना चुकी सत्यम कंप्यूटर्स को बचाना जरूरी है। वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था की यही मांग है।

Monday, January 5, 2009

दम हो तो पीट दीजिए, साथी भी मिल जाएंगे


इजरायल और भारत। दो देश, जो पड़ोसी के खतरों से जूझ रहे हैं। अब इजरायल को ही देखिए जैसे ही उस पर हमला शुरू हुआ, पीटना शुरू किया और दस दिन से पीट रहा है। दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जो जरा भी चूं-चपड़ करे। मजे की बात है कि वह चारो ओर से इस्लामिक देशों से घिरा है। भले ही उसे अमेरिका का साथ है, लेकिन उसे भी तो डर होगा कि अगर सभी पड़ोसी मिलकर उसे पीटने लगें तो अमेरिका क्या सहयोग कर देगा? बावजूद इसके, खुद उस देश में दम है और दुश्मनों को दौड़ा-दौडा़कर मार रहा है, उनकी धरती पर।
इधर भारत की देखिए। बेचारे। तरह तरह की धमकियां देकर हार चुके। इतनी छीछालेदर और इतना नुकसान तो भारत जैसे विशाल देश का तब भी नहीं होगा, अगर पाकिस्तान अपने पास पड़े सारे परमाणु बम भारत पर छोड़ दे। अगर हिम्मत बनाकर एक बार कुछ करने को ठाने तब ना। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता। अरे छोड़िये- पाकिस्तान को सबूत दिया तो दिया ही, पूरी दुनिया को सबूत दे रहे हैं कि पाकिस्तान ने ही हमें पीटा। रो रहे हैं, हमें पीटा गया। इससे तो बढ़िया था कि मुंबई विस्फोटों के बाद भी धूल झाड़कर खड़े हो जाते, जैसे अन्य विस्फोटों के बाद किया था।

धैर्य के कप में लीजिए मुनाफे का 'सिप'

मनीश कुमार मिश्र

साल 2008 इक्विटी फंडों के निवेशकों के लिए निराशाजनक रहा है। एक साल में फंडों से मिलने वाला रिटर्न ऋणात्मक ही रहा है, चाहे निवेश एकमुश्त तौर पर किया गया हो या योजनाबध्द निवेश (सिप) के रूप में।


अब सवाल यह है कि साल 2009 निवेशकों के लिए कैसा रहेगा? क्या 2008 उनके घाटे की भरपाई हो पाएगी? आइए, विभिन्न विशेषज्ञों से जानने की कोशिश करते हैं।


टॉरस म्युचुअल फंड के प्रबंध निदेशक आर. के. गुप्ता कहते हैं- साल 2008 की शुरुआत से ही बाजार में गिरावट का दौर रहा है। इक्विटी में निवेश करने वाले निवेशकों को नुकसान हुआ है लेकिन साल 2009 प्रतिफल की दृष्टि से आशाजनक है।'


कैसे? इसके जवाब में वित्तीय योजनाकार विश्राम मोदक ने कहा-अगर निवेश किसी वित्तीय लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए किया जाए तो घाटे की संभावना कम होती है क्योंकि निवेशक अपनी जोखिम उठाने की क्षमता के अनुसार विभिन्न रूपों से निवेश करता है।


योजनाबध्द निवेश योजनाएं निवेश का अनुशासित तरीका हैं लेकिन इक्विटी फंडों में निवेश कर तीन साल के बाद पैसे निकालने की बात नहीं सोचनी चाहिए।


इक्विटी या इक्विटी फंडों में सिप के माध्यम से कम से कम सात वर्षों के लिए निवेश किया जाना चाहिए वह भी किसी वित्तीय लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए विभिन्न फंडों में निवेश करते हुए।


ऐसे में निवेशकों को बेहतर रिटर्न मिल सकता है। वैसे उनका मानना है कि साल 2009 में बाजार की स्थिति में सुधार होगा होगा। फलस्वरूप, सिप के माध्यम से निवेश करने वाले नए और पुराने, दोनों निवेशकों को लाभ होगा।


गुप्ता ने भी इस पर मुहर लगाते हुए कहा - साल के पहले तीन महीनों में बाजार स्थिर रहेगा। साल 2009 के शुरुआती तीन महीनों में बाजार में स्थिरता रहेगी। लोकसभा चुनाव के आस पास बाजार में उतार-चढ़ाव रहेगा।


लेकिन हमारा अनुमान है कि साल की समाप्ति अच्छी रहेगी। इक्विटी फंडों में सिप के माध्यम से निवेश करने का यह समय उचित है। अगला साल निवेशकों की खुशियां वापस लौटा सकता है।


वैल्यू रिसर्च के मुख्य कार्यकारी अधिकारी धीरेन्द्र कुमार ने कहा, 'वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करने के बाद दीर्घावधि के लिए विभिन्न इक्विटी फंडों में सिप के माध्यम से नियमित तौर पर निवेश करना चाहिए।


बाजार के उतार-चढ़ाव का प्रभाव अल्पावधि के निवेश पर पड़ता है। दीर्घावधि (सात साल से अधिक की अवधि) के लिहाज से इक्विटी फंड बेहतर रिटर्न देते हैं। साल 2008 निवेशकों के लिए अच्छा नहीं रहा लेकिन उम्मीद है कि अगले साल वे कुछ बेहतर लाभ अर्जित कर पाएंगे।

साभार: http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=12068

Sunday, January 4, 2009

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र देगा बिहार के विकास को गति

सत्येन्द्र प्रताप सिंह


बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा से हर साल जूझने वाले बिहार ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिए कमर कस ली है।
इसके तहत सभी बुनियादी सुविधाओं वाले मेगा फूड पार्क बनाने की योजना है, जो इस साल कार्यरूप लेगा। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर टेक्सटाइल और हैंडलूम के क्षेत्र में भी तेजी से काम चल रहा है। इस कारोबार से जुड़े कारोबारियों और सरकारी अधिकारियों का मानना है कि ये क्षेत्र वर्ष 2009 को खुशगवार बना देंगे।

खाद्य प्रसंस्करण से जुडे ज़ानकारों का मानना है कि 2015 तक खाद्य प्रसंस्करण कारोबार 83,000 करोड़ रुपये तक का हो जाएगा। इसे देखते हुए बिहार सरकार ने 2 मेगा फूड पार्क बनाने की योजना बनाई है। एक मुजफ्फरपुर वैशाली क्षेत्र तथा एक भागलपुर खगड़िया क्षेत्र में होगा। मेगा फूड पार्क, छोटे-छोटे प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्रों से जोड़े जाएंगे। इसके लिए कोल्ड चेन तैयार की जाएगी। प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्रों को फील्ड कलेक्शन केंद्रों से जोड़ा जाएगा। केंद्रीय प्रसंस्करण हब के रूप में विकसित किए जाने वाले मेगा फूड पार्कों में सभी बुनियादी सुविधाएं जैसे गोदाम और प्रसंस्करण आदि की सुविधा उपलब्ध होगी। इसके अलावा चावल, मक्का और मखाना क्लस्टर के विकास के साथ ही 100 कृषि आधारित ग्रामीण व्यापार केंद्र विकसित करने की योजना है। इसके अलावा राज्य सरकार ने पिछले एक साल में निजी निवेश के 71,000 करोड़ रुपये के 145 निजी प्रस्तावों को मंजूरी दी है। इसमें 2 चीनी मिलें, 11 पॉवर प्लांट, 8 फूड प्रॉसेसिंग, 6 तकनीकी संस्थान शामिल हैं। इंटीग्रेटेड हैंडलूम डेवलपमेंट योजना के तहत राज्य के 9 हथकरघा क्लस्टर विक सित करने की परियोजना को मंजूरी दे दी गई है। साथ ही इन औद्योगिक क्षेत्रों में 50 प्रतिशत के अनुदान पर डीजल जेनरेटिंग सेट की स्थापना की योजना बनाई गई है। बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष कैलाश झुनझुनवाला का कहना है कि नया साल राज्य के लिए ढेरों उम्मीदें लेकर आ रहा है। इंटीग्रल रेल कोच फैक्टरी बनने वाली है। इससे सेवा क्षेत्र में संभावनाएं बढ़ेंगी। साथ ही सरकार की फूड पार्क, क्लस्टर डेवलपमेंट की कोशिशें भी कार्यरूप लेना शुरू कर देंगी, जिसका सीधा असर उत्पादन और रोजगार पर पड़ेगा और छोटे-छोटे कारोबार चल पड़ेंगे।बिहार के उद्योग मंत्री दिनेश यादव ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा कि राज्य में छोटे-मझोले कारोबारियों के लिए अपार संभावनाएं हैं। खासकर हमारी कोशिश यह है कि ऐसे कारोबार विकसित किए जाएं, जिसमें यहां का कच्चा माल इस्तेमाल हो सके। सरकार की पिछले तीन साल की कोशिशें इस साल रंग दिखाएंगी और वर्ष 2009 में खाद्य प्रसंस्करण, हथकरघा, बिजली उत्पादन के क्षेत्र में जोरदार प्रगति होगी। राज्य सरकार ने छोटे कारोबारियों को राहत देते हुए रस्सियों और सुतलियों, ऑटो पार्ट्स, ड्राई फ्रूट्स, प्लाईवुड, ब्लैकबोर्ड सहित उनके निर्माण में लगने वाले कच्चे माल पर वैट की दर 12।5 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया है। आने वाले साल में छोटे और मझोले उद्योग के कारोबारी अपने कार्य को विस्तार देने में की दिशा में भी काम करेंगे।

साभार: http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=12248

Friday, January 2, 2009

मिलेगा कर्ज का घी, और सुनहरे मौके भी

सत्येन्द्र प्रताप सिंह


गुजरे साल में पाई-पाई को तरसते रहे छोटे और मझोले उद्योगपतियों की झोली में 2009 काफी माल डाल सकता है, अब चाहे वह कर्ज ही हो।
वह यूं कि एक तरफ तो रिजर्व बैंक ने रोजगार में इस क्षेत्र के महत्व को देखते हुए खजाना खोल दिया है। तो दूसरी तरफ बैंकों ने भी सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों की अहमियत को समझते हुए सस्ता और सुलभ कर्ज मुहैया कराने की ठान ली है।

मिसाल के तौर पर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, जो अब तक अपने कुल कर्ज का 16 प्रतिशत एसएमई को देता है, उसने अब इसे बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का फैसला किया है। बैंक के महाप्रबंधक एस।एस. घुग्रे ने कहा, 'हमने अपने कुल दिए गए कर्ज 85,506 करोड़ रुपये में से 13,884 करोड़ रुपये एमएसएमई को दिया है, जो कुल कर्ज के 16 प्रतिशत से ज्यादा है।' यही नहीं, नए साल में इनके खुश होने की और भी कई वजहें हैं। वह इसलिए कि यूरोप और अमेरिका में भले ही इनका निर्यात प्रभावित हो रहा हो, लेकिन कैरेबियाई देशों और अन्य विकासशील देशों में संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं। यानी, जरूरत है अब सिर्फ समय की नब्ज समझकर कारोबार करने की।उद्योग से जुड़े लोगों का भी मानना है कि वर्ष 2009 में उद्योग जगत में स्थिरता आएगी और सरकार की सकारात्मक कोशिशें रंग लाएंगी।

इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष और एमआर इंजीनियरिंग वर्क्स, सहारनपुर के प्रमुख प्रवीण सडाना कहते हैं कि 8 दिसंबर को प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक से ढेरों उम्मीदें हैं।सरकार ने 13 में से 10 मांगें मान ली हैं, जिसमें कर्ज की ब्याज दरें कम करना भी शामिल है। कारोबारियों को खुला मौका है कि वे कैरेबियाई देशों में अपने उत्पादों का निर्यात कर सकते हैं।त्रिनिदाद और टोबैगो के राजदूत ने भी कहा कि हमारी खुली अर्थव्यवस्था है और देश पर मंदी का कोई प्रभाव नहीं है, कारोबारियों को खुला मौका है कि वे न केवल हमारे देश में अपने उत्पादों की आपूर्ति, विनिर्माण कर सकते हैं, बल्कि वहां आधार बनाकर अन्य देशों को भी उत्पादों की आपूर्ति कर सकते हैं। दिल्ली के प्रमुख ऑटो पाट्र्स उत्पादक और वेलकम ऑटोमोबाइल के प्रमुख नरेंद्र मदान ने कहा, 'ऑटो सेक्टर में पूरे साल मंदी का दौर रहा। उम्मीद है कि अब बड़े उत्पादकों का भी स्टॉक खत्म होने को है और इस साल उनकी तरफ से मांग बढ़ेगी।'सडाना बताते हैं कि जिला स्तर पर बैंकों का रवैया छोटे उद्योगपतियों के प्रति बहुत ही निराशाजनक होता है, जिसके चलते हमने प्रधानमंत्री से मांग की है कि जिला स्तर पर बैंकों द्वारा रिजर्व बैंक के निर्देशों के मुताबिक कर्ज दिए जाने की जांच की जाए। इस पर प्रधानमंत्री ने समिति गठित करने की घोषणा की है।

साभार: http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=12220

Thursday, January 1, 2009

'पोंजी' से पूंजी पर झाड़ू फेर गया शातिर अमेरिकी साहूकार, 2500 अरब रुपए का चूना !

ऋषभ कृष्ण सक्सेना / नई दिल्ली


हिंदी फिल्मों में गांव के साहूकार तो आपको याद होंगे, जो गरीब अनपढ़ लोगों को तगड़ी ब्याज दर पर कर्ज देकर लूटते हैं।
इनके ठीक उलट खांटी हिंदुस्तानी चिटफंड कंपनियां होती हैं, जिनमें से कुछ वित्तीय गुणा भाग से अनजान लोगों को कम से कम वक्त में ज्यादा से ज्यादा रिटर्न का झांसा देकर लूटती रही हैं। लेकिन आधुनिक वित्तीय प्रणाली की बुनियाद रखने का दावा करने वाले पढ़े-लिखे अमेरिकी भी इस झांसे में फंस सकते हैं, ऐसा किसने सोचा होगा। लेकिन नामी निवेशक बर्नार्ड मैडॉफ ने इन महारथियों को भी नहीं छोड़ा।पोंजी योजना के जरिये आम अमेरिकी निवेशकों की पूंजी लूटने का नायाब तरीका ढूंढने वाला मैडॉफ इसी वजह से आजकल सुर्खियों में है। मजे की बात है कि मैडॉफ ने लूटा भी उन देशों को, जहां के निवेशक सबसे ज्यादा तीसमारखां माने जाते हैं, मसलन अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, जापान और दक्षिण कोरिया। मंदी के दौर में इन निवेशकों को अकेले मैडॉफ ने ही 50 अरब डॉलर यानी करीब 2500 अरब रुपए का चूना लगाया है। मजे की बात है कि इनमें बड़े-बड़े नामी गिरामी बैंक भी शामिल हैं।

कौन है मैडॉफ

मैडॉफ को दुनिया ने तो तभी जाना, जब पिछले हफ्ते पोंजी घोटाले की वजह से उसे गिरफ्तार किया गया। लेकिन अमेरिका और यूरोप में मैडॉफ के मुरीदों की कमी नहीं थी, जो निवेश के तमाम बुनियादी नियमों को ताक पर रखकर 13 फीसदी के गारंटेड सालाना रिटर्न के फेर में उसके एक इशारे पर पैसा लगा देते थे।
बर्नार्ड एल मैडॉफ इनवेस्टमेंट सिक्योरिटीज नाम से निवेश कंपनी चलाने वाले मैडॉफ की वेबसाइट उसे फिनरा के नाम से मशहूर सिक्योरिटीज डीलरों के अमेरिकी संगठन का प्रमुख सदस्य बताती है। वह नैस्डैक के निदेशक मंडल का चेयरमैन भी रह चुका है और प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग की सलाहकार समिति में भी शामिल था। सिक्योरिटीज उद्योग के संघ की ट्रेडिंग समिति में मैडॉफ चेयरमैन था और 12 दिसंबर को गिरफ्तारी से पहले तक वह होफ्सत्रा विश्वविद्यालय और येशिवा विश्वविद्यालय का ट्रस्टी भी था।

क्या था पोंजी का चक्कर

पोंजी दरअसल अमेरिकी निवेशकों के लालच का ही नतीजा थी। भारत में भी कई कंपनियों ने वही किया है, जो मैडॉफ ने किया। उन कंपनियों का जो हश्र यहां हुआ, वही अमेरिका में आखिकार मैडॉफ का भी हो गया। उसने गिरफ्तार होने के बाद साफ लफ्जों में कबूल भी किया कि पोंजी योजना कुछ भी नहीं थी, यह तो 'सफेद झूठ' थी।
दरअसल मैडॉफ बेहतर रिटर्न देने के नाम पर निवेशकों से रकम लेता था। जब रिटर्न देने का मौका आता था, तो वह पुराने निवेशकों को वह रकम दे देता था, जो उसे नए निवेशकों से हासिल हुई थी। इसका मतलब है कि उसके पास तो कोई रकम थी ही नहीं और न ही वह कहीं निवेश कर रहा था यानी 'हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा।'
जांच एजेंसियों के मुताबिक कम से कम पिछले चार साल से वह यही काम कर रहा था। मजे की बात है कि पिछले 15 साल में मैडॉफ पर सवालिया निशान भी लगे, लेकिन वित्तीय जगत में अपनी पहुंच के चलते वह किसी भी कार्रवाई से हमेशा बचता रहा।

कौन हुए शिकार

सत्तर साल के इस शिकारी ने यूरोप के बड़े से बड़े दिग्गज को घुटनों पर ला दिया है। ब्रिटेन के एचएसबीसी बैंक ने कबूल किया है कि मैडॉफ ने उसे तकीबन 100 करोड़ डॉलर का चूना लगाया है। उसके सबसे बड़े शिकारों में यह बैंक शामिल है।
रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड, नोमुरा, नैटिक्सि चोट लगने की बात स्वीकार कर चुके हैं।
फ्रांस के नैटिक्सिस बैंक के 45 करोड़ यूरो इस घोटाले में डूबे हैं और ब्रिटेन की हेज फंड प्रबंधक कंपनी मैन ग्रुप को 36 करोड़ डॉलर की चोट लगी है। नामी हॉलीवुड निदेशक स्टीवन स्पीलबर्ग की वंडकाइंड फाउंडेशन भी मैडॉफ के जाल से बच नहीं पाई। उनके अलावा फ्रांस के बैंक बीएनपी पारिबा और बांको सैंटैंडर को भी मैडॉफ ने चूना लगाया है।
रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड के 60 करोड़ डॉलर मैडॉफ ने पचाए और जापान के नामी गिरामी नोमुरा बैंक के 30 करोड़ डॉलर उसकी जेब में गए हैं। यूरोप के कई दूसरे बैंकों के नाम भी अभी आ सकते हैं।

साभार- http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=11476

जुआरी पर जुर्माना!


नीलकमल सुंदरम / नई दिल्ली


अमेरिका की संघीय अदालत ने भारतीय मूल के जिब्राल्टर निवासी और ऑनलाइन गेमिंग बादशाह अनुराग दीक्षित को संचार साधनों के उपयोग का दोषी करार देते हुए करीब 1,500 करोड़ रुपये (30 करोड़ डॉलर) का जुर्माना अदा करने को कहा है।
कौन हैं अनुराग और किस तरह का करते हैं कारोबार, आइए जानते हैं :

कौन हैं अनुराग

दीक्षित झारखंड के सिंदरी में मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे (वर्ष 1973) अनुराग दीक्षित बहुत जल्द सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए दुनिया के अरबपतियों में शुमार हो गए। आईआईटी दिल्ली से 1994 में कंप्यूटर टेक्लॉजी में स्नातक की डिग्री करने के बाद उन्होंने सीएमसी और एटीएंडटी जैसी नामी-गिरामी में काम किया, लेकिन दीक्षित का मन नौकरी में नहीं रमा। और खुद का कारोबार शुरू करने की ठानी। अपनी चतुराई और तकनीकी शिक्षा के दम पर दीक्षित आज दुनिया के अरबपतियों में 618 पायदान पर हैं। फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक अनुराग की कुल संपत्ति करीब 80 अरब रुपये आंकी गई है।

ऑनलाइन गेमिंग के कारोबार में दस्तक

इसी बीच, वह ऑनलाइन पार्टी गेमिंग के संस्थापक पारासोल के संपर्क में आए। पारासोल ने उनकी प्रतिभा पहचानी और खुद का कारोबार करने के लिए प्रेरित किया। 25 वर्ष की उम्र में दीक्षित ने अपने मित्र विक्रांत भार्गव के साथ वर्ष 2001 में पार्टी पोकर डॉट कॉम नाम से पार्टी गेमिंग (ऑनलाइन जुआ) कंपनी शुरुआत ब्रिटेन के जिब्राल्टर शहर से की। जल्द ही उनकी साइट दुनियाभर में लोकप्रिय हो गई। 2005 में पब्लिक इश्यू के जरिए कंपनी की 23 फीसदी हिस्सेदारी उन्होंने बेच दी। वर्ष 2007 में कंपनी को करीब 40 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था।

मामला क्या था?

अनुराग दीक्षित पर जुए के संघीय नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था, जिसके तहत अमेरिका में दो साल की सजा का प्रावधान है। दरअसल, अमेरिकी कानूनों में वर्ष 2006 में किए गए संशोधन के बाद पार्टी गेमिंग कारोबार को प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन दीक्षित ने इसके बावजूद अपना कारोबार अमेरिका में बंद नहीं किया। इसके लिए संघीय अदालत ने दीक्षित को सट्टेबाजी के लिए संचार साधनों के उपयोग का दोषी पाया गया। हालांकि उन्होंने सजा के बजाय अर्थदंड देने का समझौता कर लिया। कंपनी के कुल राजस्व का 75 फीसदी हिस्सा अमेरिका से ही आता है।

क्या है पार्टी गेमिंग?

यह इंटरनेट पर खेला जाने वाला जुआ है, जिसे साइबर जगत में वर्चुअल गेमिंग भी कहा जाता है। इसमें दुनियाभर में कहीं बैठकर एक साथ कई यूजर विभिन्न तरह के खेलों (जुआ) में हिस्सा ले सकते हैं। इसके तहत विंगो, कसीनो जैसे ऑनलाइन गेम आते हैं। पार्टी पोकर डॉट कॉम पर सालाना 36 लाख लोग विजिट करते हैं। कंपनी का सालाना कारोबार 45।78 करोड़ डॉलर है।

साभार - http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=11579